बाड़मेर जिले में मिट्टी कला पर संकट के बादल मंडराने लगे। Panawara TV
बाड़मेर जिले भर में मिट्टी के बर्तनों की चलन धिरे धिरे कमजोर होने लगी ।
बाड़मेर जिला मुख्यालय पर बलदेव नगर में कुंभकार परिवार पिछले 40 वर्षों से मिट्टी से बर्तन बनाता है और अपना परिवार चलाता है।
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40 वर्षों से आज आसपास कई प्रकार की कॉलोनियां एवं लोग बस गए हैं, तो मिट्टी के बर्तन बनाने और उन्हें पकाने के लिए संसाधनों की कमी एवं जमीन बिल्कुल नहीं है, तो यह काम धीरे धीरे बंद हो रहा है।
इसी को लेकर पुर्व में बाड़मेर एडीएम को अवगत करवाया था वही अब बाड़मेर विधायक मेवाराम जैन को भी कुंम्हार समाज के लोगों ने अवगत करवा दिया है।
मिट्टी कला लुप्त हो रही है तो इस कला को जीवित रखने के लिए प्रशासन एवं भामाशाहओं की जरूरत है जो आगे आकर इन परिवारों को संसाधनों की जरूरत पूरी करावे।
इस साल से गर्मी की ऋतु बहुत तेज है मटकीयों की मांग है मटकी आपूर्ति हो नहीं रही है।
क्योंकि बुजुर्ग लोग ही बनाते हैं युवा पीढ़ी रुचि नहीं ले रही है।
क्योंकि ज्यादा मेहनत कम मुनाफा मिलता है और टेक्नोलॉजी बिल्कुल ही नहीं है। पुराने रविए से यह काम चला रहा है।
बल्कि माटी कला बोर्ड भी गठित किया गया है उसका लाभ इन परिवारों को नहीं मिल रहा है।
इतना ही नहीं बाड़मेर जिले के ग्रामीण इलाकों में कुंभकार परिवार मिट्टी के बर्तन बनाने की कला को सरकारी मदद सहयोग नहीं मिलने से परेशानी उठाने को मजबुर हैं।
वहीं मिट्टी के बर्तन मंहगे दामों में तैयार होते हैं तथा विभिन्न धातुओं के बर्तन बाजार में सस्ते दामों में बिक्री जोरदार होने से मिट्टी के बर्तनों की मांग पर रोक लगे जैसा हो गया है।
ग्रामीण क्षैत्रों में मिट्टी की मटकियां को देशी फ्रिज के नाम से जाना जाता है। हर घर में मिट्टी मटकीयों की जरुरत है पर लोहे की धातु के बर्तन बाजार से लोग खरीद करते हैं पर बुजुर्ग लोग मिट्टी के मटको में पानी रखते हैं और ठंडा पानी पिकर अपनी प्यास बुझाते हैं।
बुजुर्ग लोग बताते हैं कि मिट्टी से बने तवे पर रोटी पकाई गई स्वादिष्ठ होती हैं वही मिट्टी के बर्तन में पकाई सब्जियां बहुत ही अच्छी लगती हैं।
सरूपाराम प्रजापत की रिपोर्ट।
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